रविवार, 26 जून 2011

आशियाँ…


एक माहिर तामीरत की तरह,
किसी कोरे कागज पर,
आड़ी टेढ़ी सी लकीरें खींच,
बनाया एक ईमारत का
नक्शा|
नीव-ए-उम्मीद बड़ी मेहनत से
रखी और सींची,
खडीं की चाहतों की
चार दिवारी,
एक एक कोने को,
आसमान के
खालिस सितारों से सजाया|
तैयार है मेरे सपनों का,
छोटा सा आशियाँ,
“तुम" आकर देख तो लो,
यकीनन “महल" बन जायेगा….
                                                                --देवांशु