बुधवार, 23 नवंबर 2011

लम्हें…

अब,
जबकि ये मालूम है,
नहीं मुमकिन,
तेरा मेरी जिंदगी में होना,
तो दो घड़ी बैठ,
सोचना चाहा, कुछ लम्हों के बारे में,

कुछ लम्हे,
जो मेरी गुज़री जिंदगी से हैं,
वो तुम्हारे करीब से गुज़रे थे,
वो गुजर गए,
उनका मुझे कोई अफ़सोस नहीं|

बात उन लम्हों की भी जो,
जो तुम्हारे जाने से अब तक बीते,
वो तुम्हारे पास कैद थे,
आज वो भी आजाद हो गए|

और फ़िक्र बाकी नहीं,
अब उन लम्हों की भी ,
जो अब बीतेंगे,
अन्धेरा नहीं होगा अब,

तेरे अक्स को शीशा नशीं कर रख लिया है,
उजाला मिलेगा जिंदगी को इसी से, तेरे जाने के बाद|

अब, फिर लौट मत देखना, मै बहुत खुश हूँ!!!!

गुरुवार, 3 नवंबर 2011

मोड़ पे बसा प्यार…

तुमने तो देखा होगा..
वो शख्स जो तुम्हारी गली के मोड़ पे रहता था..
मुस्कुराता था मुझ पर जब मैं,
तुम्हे देखने भर उधर आया करता था,
तुम घर से निकलती रहती थी,
मै साइकल की चेन चढ़ाता रहता था..
कभी-कभी नहीं आ पाता था तुम्हारे घर तक,
वो मुझे मोड़ से ही बिना कुछ कहे लौटा दिया करता था,
तुमने तो देखा होगा..
वो शख्स जो तुम्हारी गली के मोड़ पे रहता था..

gali

गुजरते उन गलियों से मैं हमेशा डरता रहा,
कि ये मुझे देख बस हँसता क्यूँ है,
कुछ कहता क्यूँ नहीं..
ना उसने कभी कुछ बोला,
ना मैं कभी पूँछ पाया,
पर जब उस दिन तुम जा रही थी ये शहर छोड़ कर,
मैं आया था,
पर वो नहीं था वहाँ, दो आँसूं रखे थे बस...
शायद तुमने देखा नहीं,
एक शख्स जो तुम्हारी गली के मोड़ पे रहता था..

--देवांशु