सूरज की किरणों के ज़मीं पर पड़ने से ठीक पहले,
अधजगे से बिस्तर पर पड़े हुए,
तुम्हारा जो मुस्कुराता हुआ चेहरा ज़हन में आ जाता है |
मैं उसी मुस्कान के तसव्वुर में उठता हूँ,
कैसे कहूं !!! मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ |
शाम अधूरी सी ही बीतती है अब ,
ना मालूम कुछ अनछुआ सा रह जाता हो जैसे हर रोज़ |
पर जब ढलते सूरज के साथ चिड़िया घर वापस आती है ,
उसकी आवाज़ में मैं तुम्हारे तराने सुनता हूँ,
कैसे कहूं !!! मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ |
--देवांशु